आर्थिक आजादी का अभियान

अपने देश की आर्थिक स्थिति पर नजर डाले तो कुछ चीजें बडी स्पष्टदिखाई देती हैं । हम पिछ्डे हुए देशो की गिनती में आते हैं। गरीबी हमारे देश का सबसे बडा अभिशाप बन गई है। आय के अवसरों का बहुत अभाव हैं। अनेकों प्रतिभाओ का सदुपयोग नही हो पा रहा है। विकास के नाम पर चन्द लोगों का विकास हो रहा है। आम आदमी को अनिवार्य आवश्यकताओं के लिये धन जुटाना भी मुश्किल होता जा रहा है। निम्न वर्ग अपनी स्थिति से उभर नही पा रहा है, तो मध्यम वर्ग उससे भी खराब स्थिति में जी रहा है। कितने ही मध्यम वर्गीय परिवार घोर निराशा और तनाव का जीवन जीने को मजबूर हो गये है। समाज में अपना स्तर बना कर रखना उनके लिये बहुत ही मुश्किल हो गया है। क्योकि संचार माध्यमों और विज्ञापन की दुनिया ने उपभोग की प्रवृति को बढा दिया है। जीवन की आवश्यकताओं को विस्तृत कर दिया है। एक मध्यम वर्गीय परिवार को T.V.,Fridge,Telephone,Two Wheeler,Birth day Party, बच्चों को महगें Private स्कूलों में पढाना ,अच्छे अच्छे कपडे, घर आदि चीजें मेन्टेन करना अनिवार्य हो गया है। रोज के खाने पीने और रहन सहन के खर्च भी एक स्तर के अनुसार करना जरुरी हो जाता है। कभी भी शादी - विवाह बिमारी आदि के बडे खर्चे भी आ सकते है। जिस प्रकार खर्चे बढ रहें हैं उतने आय के अवसर नही बढ रहें हैं, बल्कि और कम होते जा रहे हैं, जिसके कारण कई ऎसे मध्यम वर्गीय परिवार देखे जा सकते हैं जो एक तनाव भरी जिन्दगी जीने को मजबूर हो जाते हैं। ऎसा नही है कि सभी लोग ऎसा ही जीवन जी रहें हैं लेकिन समृध वर्ग का प्रतिशत बहुत कम है। हमारे अर्थशास्त्रियों के अनुसार देश का 80% पैसा 20% लोगों के पास है और वर्तमान व्यवस्था कुछ इस प्रकार हो गयी है कि 80% लोगों का पैसा प्रतिदिन उन 20% लोगों के पास जा रहा है । ये 20% लोग 80% लोगों से खर्च करवाने के नित नये तरीके निकाल लेते हैं। हमारा वस्तुओं की तरह उपयोग किया जा रहा है। हमारी वजह से चन्द लोग अमीर बनते जा रहें हैं, लेकिन हमारी उन्नति का कोइ रास्ता नही निकल रहा है। अमीरी और गरीबी की खाई नित्य प्रति बढ्ती जा रही है। अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है । देश में न ही पैसे की कमी है और न ही साधनो की , लेकिन जब तक यह पैसा आम आदमी तक नही पहुचेगा तब तक देश का सर्वागीण विकास नही हो सकता। इस स्थिति से उभरने के लिये के श्री त्रिलोक चन्द छावडा जी ने इस  Business के रुप में एक अभियान की नीव डाली। देश के 80% लोगों के हाथ से जाते हुए पैसे को रोकने का एक वैज्ञानिक तरीका , इस सोच के साथ निकाला कि यह पैसा इनके हाथ से बाहर न जाय तो यह वर्ग भी सम्पन्नता हासिल कर सकता है। यह  Business अपने भीतर आर्थिक स्वावलम्बन का मजबूत इरादा लिये हुए है। सम्पूर्ण अभियान उपभोक्तओं के हितों के प्रति समर्पित है। इस अभियान की शुरुआत तीन उद्देश्यों को लेकर की गयी है । 1. उप्भोक्ता को वाजिब कीमत पर अच्छी क्वालिटी उपलब्ध कराना 2. विज्ञापन और मार्कटिंग पर खर्च होने वाली विशाल धन राशी को बचाकर उसका फ़ायदा उप्भोक्ता को पहुचाना 3. हर उप्भोक्ता को असीमित और सहयोग आधारित व्यवसाय के अवसर प्रदान करना । इस  Business की शुरुआत के पीछे आम आदमी के जीवन स्तर को उपर उठाने का सपना है। परमपरागत असमानता वादि सिद्धान्तों का खन्डन है ,सहयोगातमक आधार है और सामुहिक अभियान है। सबको इस अभियान में सामिल होने का अवसर प्रदान किया गया है। पूरे समाज की उन्नाति तीन बातों पर निर्भर है। नैतिक मूल्यो पर आधारित आय के समान अवसर ,संगठन व आपसी सहयोग । इन तीन बातों पर आधारित है यह  Business । इसमें सारे उपभोक्तओं को एक साथ मिल कर कार्य करने का आहवाहन है। इसमें एक ऐसा वैज्ञानिक तारीका इजाद किया गया है कि दूसरों का जितना विकास कर सको स्वयं का उतना ही अधिक विकास है। ये एक ऐसा विजनेस है जिसमें सारी आय उप्भोक्ता के हाथों में है । इसमें आय लेने के लिये दूसरो का शोषण नही पोषण करना होता है। दूसरों को उपर उठाकर ही आप उपर उठ सकते हैं। दूसरों को सम्पन्न बनाये बिना कोई सम्पन्न बन ही नही सकता है। इस विजनेस में उत्पादो का उपभोग ही आय का मुख्य आधार है। जहा परम्परागत तरीके में ढेर सारा पैसा विज्ञापन और मार्केटिंग में खर्चहोकर चन्द हथों में चला जाता है वही पैसा इस Business में उपभोक्ताओं में बाटा जाता है। किसी उत्पाद के विज्ञापन पर करोडों रुपये खर्च कर देने से क्या उस उत्पाद की क्वालिटी बदल जाती है ? विज्ञापन भी वे लोग करते हैं जिनको क्वलिटी के वारे मॆं कुछ पता नही होता, उन्होंने कभी भी उसका उप्भोग नही किया । उनको पैसा देकर कुछ भी बुलवाया जा सकता है। जरा सोचिये उपभोक्ताओं का पैसा ऐसे विज्ञापन पर खर्च करना उचित है या स्वयं उनको को देना उचित है ? जरुरत है सिर्फ़ संगठित होने की, परम्परागत तरीके से हटकर कुछ नया सोचने की, और इस  Business ने यही अवसर सबको दिया है। सब मिलकर सोच लो नही चाहिये हमें भ्रमित करने वाले विज्ञापन । हम सब मिलकर खुद क्वालिटी परखकर प्रचार करेगें और उससे होने वाली आय से सभी उप्भोक्ताओं को फ़ायदा पहुचायगें। वास्तव में किसी अच्छी चीज की तारीफ़ करना मनुष्य के स्वभाव में होता है इस सिस्टम में उसी आदत का लाभ वह स्वयं ले सकता है। माउथ पब्लिसिटि में भी इतनी ताकत है कि जिसके जरिये किसी बात का प्रचार पूरे देश में किया जा सकता है। क्या हम इसका इस्तेमाल सिर्फ़ दूसरों के लिये ही करें ? थोडा हम इसे अपने लिये करके अपनी आर्थिक आजादी का अध्याय लिख सकते हैं।

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